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वाराणसी। भगवान जगन्नाथ लगातार 15 दिनों तक काढ़े का भोग लगाने से स्वास्थ्य लाभ पर बुधवार को आषाढ़ मास के अमावस्या तिथि पर प्रात: 5:00 बजे भक्तों को दर्शन के लिए कपाट खोल दिए गए। भगवान जगन्नाथ के दर्शन पूजन के लिए सुबह से ही भक्तों के कतार लगी । आपको बता दें,  ज्येष्ठ मास के पूर्णिमा तिथि को भक्तों द्वारा अत्यधिक जलाभिषेक करने के कारण भगवान जगन्नाथ बीमार पड़ जाते है। जिसके बाद भगवान एकांतवास में चलें जाते है।

भगवान को लगा परवल का जूस का भोग

वाराणसी के अस्सीघाट स्थित भगवान जगन्नाथ का पट भक्तों के दर्शन के लिए खोल दिया गया। मंदिर के प्रधान पुजारी राधे श्याम पांडे ने बताया कि, प्रातः काल भगवान का सफेद वस्त्र, सफेद फूलों से श्रृंगार कर पंचामृत का भोग लगाकर भव्य आरती की गई। आरती के पश्चात पंचामृत का प्रसाद भक्तों में वितरण किया गया। आज भगवान को परवल का जूस परवल के जूस का भोग लगाया गया। गुरुवार को भगवान की डोली निकलेगी। 27 से 29 जून तक रथ यात्रा मेला में भगवान रथ पर रथरूढ़ होकर भक्तों को दर्शन देंगे।

देशभर के मंदिरों में स्नान यात्रा बाद भगवान जगन्नाथ 15 दिनों के एकांतवास में चले जाते हैं। इस अवधि में मंदिर के पट बंद कर दिए जाते है और किसी भी भक्त को भगवान के दर्शन नहीं होते। माना जाता है कि भगवान की तबीयत खराब हो जाती है और उनकी सेवा गुप्त रूप से की जाती हैं।

भगवान जगन्नाथ के बीमार होने के पीछे मान्यता

भगवान जगन्नाथ के बीमार पड़ने की परंपरा के पीछे एक बेहद भावुक और प्रेरणादायक कथा जुड़ी हैं। कहा जाता है कि माधव दास नमक एक महान भक्त रहते थे, जो हमेशा भगवान जगन्नाथ की सेवा में लीन रहते थे। एक बार माधव दास गंभीर रुप से बीमार हो गए लेकिन उन्होंने इलाज कराने से मना कर दिया। उनका विश्वास था कि भगवान ही उनका ध्यान रखेंगे। जब माधव दास की हालात बिगड़ने लगी तब स्वयं भगवान जगन्नाथ उनकी सेवा करने पहुंचे। माधव दास जब ठीक हुए तब उन्होंने भगवान से पूछा “प्रभु! आप मेरी सेवा क्यों कर रहे थे?” तब भगवान ने मुस्कुराकर उत्तर दिया “मैं अपने भक्तों का साथ कभी नहीं छोड़ता लेकिन तुम्हारे कर्मों का फल तो तुम्हें भोगना ही पड़ेगा। तुम्हारी बीमारी के जो 15 दिन बचे हैं, उन्हें मैं अपने ऊपर ले लेता हूं। यह घटना ज्येष्ठ पूर्णिमा के दिन हुई थी। तभी से यह परंपरा चल रही है कि हर साल ज्येष्ठ पूर्णिमा के बाद भगवान 15 दिनों के लिए बीमार पड़ जाते है। इसके बाद भगवान के पुनः स्वस्थ होने का जश्न नेत्रोत्सव और रथ यात्रा के रुप में मनाया जाता हैं।


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