वाराणसी : भारत के गौरवशाली इतिहास में जब-जब महान वीरांगनाओं का जिक्र किया जाएगा। महारानी लक्ष्मी बाई की वीरता, पराक्रम और देशभक्ति हमेशा लोगों को प्रेरणा देते रहेंगे। हर साल 18 जून को रानी लक्ष्मी बाई के बलिदान दिवस के रूप में उनके शौर्य की याद दिलाता है।
21 नवंबर 1853 को रानी लक्ष्मीबाई के पति एवं झांसी के राजा गंगाधर नेवलकर की मृत्यु के बाद ये झांसी की रानी की गद्दी संभाली। अंग्रेजों ने अवसर देखकर 1854 से 1857 तक कई बार झांसी पर हमला किए। झांसी ने भी रानी के नेतृत्व में ईट का जवाब पत्थर से दिए। युद्ध में कई अंग्रेज मारे गए। पहली बार में ही अंग्रेजों के छक्के छूट गए।
17 जून 1858 को रानी लक्ष्मीबाई का अंतिम युद्ध ग्वालियर में लड़ा गया । तब रानी दत्तक पुत्र को पीठ पर बांधकर अंग्रेजों से निर्भीकता पूर्वक युद्ध करने लगी। अंग्रेजों से युद्ध करते हुए स्वर्ण रेखा नाले की ओर बढ़ चली। किंतु दुर्भाग्यवश रानी का घोड़ा इस नाले को पार नहीं कर सका और घायल हो गया । उसी समय एक अंग्रेज सैनिक ने पीछे से उनके सिर पर गोली मार दी । तभी लक्ष्मीबाई ने उस अंग्रेज सैनिक को अपने तेज तलवार से दो टुकड़े कर दिए। लेकिन अंग्रेजों ने उन पर घेरकर तलवार से हमला कर दिया । तब रानी का अंगरक्षक घायल अवस्था में उन्हें लेकर पास के एक मंदिर में पहुंचा । जहां रानी ने पुजारी से कहा कि मेरे बेटे दामोदर की रक्षा करना और अंग्रेजों को मेरा शरीर नहीं मिलना चाहिए । अंत में 18 जून 1958 को रानी लक्ष्मीबाई साहस और शौर्य का प्रदर्शन करते हुए वीरगति को प्राप्त हुईं।
अंग्रेजों से बचाने के लिए संत गंगा दास ने रानी का पार्थिव देह मंदिर की कुटिया में रखा और घास फूस से नारी शक्ति को मुखाग्नि देकर उनका अंतिम संस्कार कर दिए।
उसी जगह रानी की चिता ने ग्वालियर में शौर्य की ज्वाला को अमर कर दिया। फूलबाग में वही उनकी समाधि बनी। अंग्रेजों की सरपरस्ती में ग्वालियर का काला अध्याय भले ही रानी को मौत दे गया। लेकिन दुनिया से जाते- जाते वह ग्वालियर को दे गई, वीरता की एक अमिट कहानी। वह देश भक्ति का एक ऐसा इतिहास लिख गई कि आने वाली पीढ़ियों को प्रेरणा देता रहेगा।
भारत विकास परिषद काशी प्रांत के संरक्षक श्री एस. एन. खेमका, शिवा शाखा के अध्यक्ष मोहन रौनियार, सचिव अखिलेश तिवारी, कोषाध्यक्ष कौशल शर्मा , काशी प्रांत के पर्यावरण प्रकल्प प्रमुख मदन राम चौरसिया, डॉ. अनिल गुप्ता, रघूदेव अग्रवाल, कृष्ण कुमार काबरा, प्रदीप चौरसिया, अरूण अग्रवाल, प्रतिमा तिवारी , बासुदेव गुप्ता एवं अन्य पदाधिकारी तथा सदस्यगण शिवा शाखा द्वारा स्थापित रानी लक्ष्मीबाई की स्टेचू पर माल्यार्पण किए। महारानी लक्ष्मी बाई के बलिदान दिवस पर उन्हें कोटि-कोटि नमन करके श्रद्धांजलि अर्पित किए। ऐसे महान वीरांगना की जन्मस्थली काशी होने पर हम सभी उनकी वीरगाथा पर गर्व करते हैं।