वाराणसी। शारदीय नवरात्र में भक्त मां देवी आदि शक्ति के नौ रूपों का दर्शन कर पूजन अर्चन करते है. श्रद्धालु अपने अपने तरीके से मां को नौ दिनों तक विशेष तरीके से आराधना करते है। इस आधुनिक युग में कई लोगों का सोशल मीडिया सहारा बनाता है। वाराणसी के दो नन्हें मूर्ति कलाकार जो मां दुर्गा से प्रेरित होकर पिछले आठ सालों से मां दुर्गा, लक्ष्मी, सरस्वती, गणेश, कार्तिकेय एवं महिषासुर राक्षस को अपने हाथों से बनाते है। प्रतिमा बनाने में जो खर्चा आता है ये दोनों बच्चे अपने पॉकेट मनी को बचा कर करते है।
वाराणसी के छित्तूपुर क्षेत्र श्रेयांश विश्वकर्मा (14) एवं छोटा भाई किशन विश्वकर्मा (12) छोटी से उम्र में ही मां दुर्गा के भक्ति से ओत – प्रोत होकर पिछले 8 सालों से प्रतिमा यूट्यूब से सीख कर बनाने का काम कर रहें है। यहीं नहीं वो पिछले छः साल से मां दुर्गा की प्रतिमा स्थापित कर दुर्गा पूजा करते है। श्रेयांश विश्वकर्मा ने बताया कि प्रतिमा बनाने की कला किसी से नहीं सीखें है, वो यूट्यूब के माध्यम से ही सीख कर मां दुर्गा, लक्ष्मी, गणेश, सरस्वती, कार्तिकेय एवं महिषासुर जैसे राक्षसों की प्रतिमा बनाते हैं।
श्रेयांश ने आगे बताया कि अभी बहुत सुधार की जरूरत है, उन्हें रंगो के बारे में भी अभी जानकारी नहीं है, अभी वह क्लास 9 में पढ़ रहे हैं। 12 के पढ़ाई पूरी होने के बाद वह मूर्ति कला के बारे में सीखेंगे। श्रेयांश ने बताया कि लगभग आठ साल से प्रतिमा बना रहे है। जिसमें मां सरस्वती, माता लक्ष्मी, गणेश कार्तिक, महिषासुर राक्षस और उनके वाहन भी बनाए हैं. मूर्ति बनाने में 20 दिन लगे। शंकर जी, दुर्गाजी, गणेशजी, भैरवजी, हनुमान जी सहित कई मूर्तियां बनाई है। मूर्ति बनाने के लिए मिट्टी, दफ्ती, कागज, मोती, पुआल, माता को सजाने के लिए किरकिरी, स्टोन, धोती सहित अन्य सामान भी लाते हैं। नौ दिनों तक इनकी पूजा-अर्चना के बाद विसर्जित कर देते हैं।
श्रेयांश ने बताया कि इस बार जो हमने दानव बनाया है वह आधा भैंस और आधा मनुष्य के रूप में दिखलाया हो। फ्रांस ने बताया कि जब मां दुर्गा से महिषासुर नामक दाना लड़ रहा था उसे समय वह आधा मनुष्य तो आधा पशु के रूप में था।
इन बच्चों के पिता राजेंद्र विश्वकर्मा गोलगप्पे की दुकान चलते हैं. इन बच्चों को पूरे साल जो जेब खर्च मिलता है, उसे बचाते हैं और शारदीय नवरात्र में देवी की प्रतिमा निर्माण में वह पैसा खर्च करते हैं। खास यह कि बिना फरमा (फ्रेम, सांचा) के ऐसी मूर्ति बनाते है कि लोग देखते ही रह जाएं। मझे हुए मूर्तिकार भी नहीं पहचान पाते कि प्रतिमा बिना फ्रेम के तैयार की गई है।
राजेंद्र विश्वकर्मा कहते हैं बच्चों ने यू-ट्यूब पर देख कर इतनी सुंदर प्रतिमा बनाई कि बार-बार देख कर भी मन नहीं भरता. पड़ोस में रहने वाली एथलीट बेबी कुशवाहा ने बताया कि जब भी श्रेयांश को मूर्ति बनाने के लिए बोलती हूं तो वो बना कर देता है. पैसे भी नहीं मांगता है.
उन्होंने बताया कि पहले यह बच्चे 2 फीट ऊंची मूर्ति बनाते थे, परंतु अब धीरे-धीरे 8 से 10 फीट की मूर्ति बनाने लगे हैं और शारदीय नवरात्र में इन बने मूर्तियों का विधि विधान के साथ स्थापित किया जाता है और पूजन अर्चन भी किया जाता है.