वाराणसी। बंगाल के बाद वाराणसी में दुर्गा पूजा भव्य तरीके से मनाया जाता है. इसकी शुरुआत वाराणसी में सैकड़ो साल पहले हो चुकी थी. इसकी शुरुआत बंगीय समाज ने किया था. वाराणसी में सार्वजनिक दुर्गा पूजा की शुरुआत वाराणसी दुर्गोत्सव सम्मिलनी (वीडीएस) ने की थी. जो 1922 में शुरू हुआ था. जो लगभग 104 सालों से मनाया जाता है. मां दुर्गा के सोने के आभूषण से श्रृंगार किया जाता है. जो देखने में अद्भुत नजर आता है.
वाराणसी में बांगीय समाज द्वारा वाराणसी दुर्गोत्सव सम्मिलनी (VDS) द्वारा यूपी – उत्तराखंड में पहला सार्वजनिक पूजा पंडाल सन 1922 में शुरू हुआ था. काशी की इस पहली सार्वजनिक दुर्गा पूजा में काशी का राजपरिवार भी शामिल हुआ था. कुछ वर्ष बाद इस पूजा को पांडेय हवेली स्थित सीएम एंग्लो बंगाली प्राइमरी पाठशाला प्रांगण में स्थानांतरित कर दिया गया. तब से प्रतिवर्ष इसी स्थान पर दुर्गा पूजा होती आ रही है. इसमें पूर्वांचल के नामी-गिरामी बंगीय परिवार के सदस्य इस पूजा से जुड़े है.
वीडीएस के जनरल सेकेट्री संजय घोष ने दावा किया कि वो यूपी ही उत्तराखंड की पहली सार्वजनिक पूजा पंडाल है. इसके पहले ये चौखंभा में होता था. अब बंगाली टोला के पास स्थान मिलने पर यहां पर तब से पूजा किया जा रहा है. हम लोग पूरे बांगीय समाज की तरह पूजा करते है. इसकी शुरुआत एक महीने पहले शुरू हो जाती है. इसको बनाने के लिए 15 कलाकार बंगाल से आते है जो दिन रात बनाने का काम करते है.
संजय घोष ने आगे बताया कि वाराणसी दुर्गोत्सव सम्मिलनी ये क्लब नहीं सम्मिलनी है. इसका पूजा लोगों के बीच होता है. ये सार्वजनिक पूजा है. उन्होंने आगे बताया कि हम लोगों का इसमें कई चरण में पूजा होता है. एक महीना पहले हम लोग कंपटीशन शुरू कर देते है. इसमें बंगला हैंडराइटिंग, कविता, भजन, शंखा ध्वनि एवं धुनुची आरती, डांस प्रोग्राम का आयोजन किया जाता है.
संजय घोष ने आगे बताया कि हम लोग पूरी परंपरा के साथ दुर्गा पूजा मनाने का काम करते हैं इसके तहत हम लोग तीन दिनों तक हजारों लोगों को भंडारा के तहत प्रसाद वितरण करते हैं तथा नवमी के दिन बंगाली रीति रिवाज के तहत माता को मछली का भोग लगाकर लोगों को प्रसाद के रूप में वितरण किया जाता. बंगाली समाज की महिलाएं माता के विसर्जन से पहले सिंदूर खेला खेलती हैं और एक दूसरे को सिंदूर लगाने का काम करती हैं, एक दूसरे को बधाई भी देती है.
वाराणसी दुर्गोत्सव सम्मिलनी के वाइस प्रेसिडेंट गौतम अधिकारी ने इस दुर्गा पूजा समिति में पंडाल से लेकर थीम निर्धारण का काम किया जाता है इसमें बांगीय समाज द्वारा पूरी तरह से कार्य होता है. उन्होंने बताया कि यहां पर मां आदि शक्ति दुर्गा के सोने के आभूषण से श्रृंगार किया जाता है. यह आभूषण क्लब के सदस्यों द्वारा दिया गया है. जो अभी लॉकर में है . पूजा के दिन निकाला जाएगा और पूजा बाद फिर लॉकर में जमा हो जाता है. उन्होंने बताया कि यह कितना आभूषण है इसे गुप्त रखा जाता है, क्योंकि यह माता का चढ़ावा है. इसका हिसाब किताब से समिति के डायरी में ही लिखा है.
संजय विश्वास ने बताया कि वो चौड़ी पीढ़ी के सदस्य है. उन्होंने आगे बताया कि बंगाल के बाद वाराणसी का पूजा का महत्व है लेकिन वाराणसी में कुछ खास महत्व है. बंगाल में सजावटी काम ज्यादा होते हैं. वहां लोग दर्शन करने आते हैं चले जाते हैं लेकिन वाराणसी में लोगों का एक दूसरे से जुड़ाव होता है. मां के पूजा पाठ में सहयोग करते हैं. यह काशी की धरती एक दूसरे को जोड़ने का काम करती है. इसीलिए वाराणसी की पूजा की बात करें तो यह सबसे अलग है और अतुलनीय है.